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म॒हश्चि॑दग्न॒ एन॑सो अ॒भीक॑ ऊ॒र्वाद्दे॒वाना॑मु॒त मर्त्या॑नाम्। मा ते॒ सखा॑यः॒ सद॒मिद्रि॑षाम॒ यच्छा॑ तो॒काय॒ तन॑याय॒ शं योः ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mahaś cid agna enaso abhīka ūrvād devānām uta martyānām | mā te sakhāyaḥ sadam id riṣāma yacchā tokāya tanayāya śaṁ yoḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒हः। चि॒त्। अ॒ग्ने॒। एन॑सः। अ॒भीके॑। ऊ॒र्वात्। दे॒वाना॑म्। उ॒त। मर्त्या॑नाम्। मा। ते॒। सखा॑यः। सद॑म्। इत्। रि॒षा॒म॒। यच्छ॑। तो॒काय॑। तन॑याय। शम्। योः ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:12» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:12» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! (देवानाम्) विद्वानों के (उत) और (मर्त्यानाम्) अविद्वानों के (अभीके) समीप में (महः) बड़े (चित्) भी (एनसः) अपराध के (ऊर्वात्) विस्तीर्णभाव से हम लोग विनाश करें अर्थात् उन कर्मों का नाश करें जो अपराध के मूल हैं और (ते) आपके (सखायः) मित्र हुए आपके (सदम्) स्थान को (मा) मत (रिषाम) नष्ट करें और आप (तोकाय) शीघ्र उत्पन्न हुए पाँच वर्ष की अवस्थावाले (तनयाय) पुत्र के लिये (शम्) सुख (योः) उत्तम कर्म से उत्पन्न हुआ (इत्) ही (यच्छ) दीजिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग विद्वानों के समीप स्थित हों और शिक्षा को प्राप्त होकर पापस्वरूप कर्म्म का त्याग कर अन्यों का भी त्याग करें =करावैं, सब के मित्र होकर कुमार और कुमारियों को उत्तम शिक्षा देकर और सम्पूर्ण विद्या प्राप्त करा के सुखयुक्त करें, वैसा आप लोग भी आचरण करो ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्गुणानाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! देवानामुत मर्त्यानामभीके महश्चिदेनस ऊर्वाद्वयं विनाशयेम। ते सखायः सन्तस्तव सदं मा रिषाम। त्वं तोकाय तनयाय शं योरिद्यच्छ ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (महः) महतः (चित्) (अग्ने) विद्वन् (एनसः) अपराधस्य (अभीके) समीपे (ऊर्वात्) विस्तीर्णात् (देवानाम्) विदुषाम् (उत) अपि (मर्त्यानाम्) अविदुषाम् (मा) (ते) तव (सखायः) सुहृदः (सदम्) स्थानम् (इत्) (रिषाम) हिंस्याम (यच्छ) देहि। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (तोकाय) सद्यो जाताय पञ्चवार्षिकाय (तनयाय) दशवार्षिकाय षोडशवार्षिकाय वा (शम्) सुखम् (योः) सुकृताज्जनितम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथा वयं देवानां समीपे स्थित्वा शिक्षाः प्राप्य पापात्मकं कर्म्म त्यक्त्वाऽन्यान् त्याजयेम सर्वेषां सुहृदो भूत्वा कुमारान् कुमारींश्च सुशिक्ष्य सकला विद्याः प्रापय्य सुखयुक्ताः सम्पादयेम तथा यूयमप्याचरत ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जसे आम्ही विद्वानांजवळ राहून शिक्षण प्राप्त करून पापस्वरूप कर्माचा त्याग करून इतरांनाही करावयास लावतो. सर्वांचे मित्र बनून कुमार-कुमारींना उत्तम शिक्षण देऊन संपूर्ण विद्या प्राप्त करून सुखी करतो, तसे तुम्हीही आचरण करा. ॥ ५ ॥